admin – Neeraj Agrawal: Social Entrepreneur | Motivational Speaker https://neerajagrawal.in Social Entrepreneur | Motivational Speaker Tue, 24 Sep 2024 13:12:12 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://neerajagrawal.in/wp-content/uploads/2024/09/cropped-Neeraj_Agrawal_Site_Icon-1-32x32.jpg admin – Neeraj Agrawal: Social Entrepreneur | Motivational Speaker https://neerajagrawal.in 32 32 नेपाल रिलीफ मिशन https://neerajagrawal.in/nepal-relief-mission/ https://neerajagrawal.in/nepal-relief-mission/#respond Tue, 24 Sep 2024 08:47:55 +0000 https://neerajagrawal.in/?p=1744

नेपाल रिलीफ मिशन: चौथा दिन (10 मई) : धुलिखेल अस्पताल : भाग 1

इन्टरनेट और मित्रों के माध्यम से ये जानकारी मिल चुकी थी कि सिंधुपालचोक में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है और उस पुरे इलाके के मरीजों का इलाज धुलिखेल अस्पताल में ही हो रहा है। धुलिखेल अस्पताल कम्युनिटी फंडिंग से बना एक मेडिकल कॉलेज है जो काठमांडू युनिवर्सिटी के तहत संचालित है। लगभग 150 किलोमीटर कि रेडियस से मरीज आते है। अस्पताल द्वारा आस पास के जिलो में कुल 18 सटेलाईट मेडिकल रिलीफ क्लिनिक्स भी चलाये जा रहें है, जिनमे से कुछ भूकंप में ध्वस्त हो गए।

300 बेड के इस अस्पताल में अभी 1600 मरीजो का इलाज़ हो रहा था, बिलकुल निशुल्क। भूकंप के बाद से कुल 250 मेजर और 2000 माइनर ऑपरेशंस किये गए सभी निःशुल्क। मरीजो का और उनके एक परिजन का खाना नास्ता मुफ्त , दवाइयां मुफ्त, आर्मी द्वारा हेलिकोप्टर से मरीजो को लाया जा रहा था। जितने मरीज अस्पताल के अंदर इलाज़ करा रहें थे उतने ही बाहर भी थे। अस्पताल के बाहर लगातार लंगर चल रहा था , मरीजो के परिजनों के लिए।
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हम सुबह 8 बजे धुलिखेल अस्पताल पहुंचे, डॉ० राजीव बिष्ट और निर्देशक डॉ० राजेन्द्र कुज़ु से मुलाकात हुई, उन्होंने बताया कि वो ना केवल मरीजो के इलाज़ का कार्य करा रहें है वरन मरीजो को सभी ज़रुरी राहत सामग्री भी बाँट रहें है और अपने सटेलाईट सेंटर्स के माध्यम से वो दूर दराज के ग्रामीण इलाको में भी राहत सामग्री जैसे कि टेंट, त्रिपाल, चटाई, कम्बल, कपडे, जुते, बर्तन, खाद्य पदार्थ आदि का भी वितरण कर रहें है।

हमने अपनी सारी बची हुई (लगभग 80%) दवाइयों को यहाँ धुलिखेल अस्पताल में देने का निर्णय किया, साथ ही आधी नॉन मेडिकल राहत सामग्री भी धुलिखेल अस्पताल को देने का निर्णय किया।

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फ़ोटो: नेपाल के धुलिखेल स्थित धुलिखेल अस्पताल में भूकम्प पीड़ितो के सहायतार्थ जरुरी सामग्री वितरित करते सिमेज के सदस्य।

नेपाल रिलीफ मिशन : चौथा दिन (10 मई) : इन्द्रावती नदी -भोटशिपा गांव (सिंधुपालचोक) : भाग 1

महात्मा गाँधी स्मृति सेवा संस्थान के थापा जी के साथ हम धुलिखेल अस्पताल से निकल सिन्धुपाल्चोक की तरफ बढे, मेरे रिश्तेदार बिनय तिब्डेवाल और भारतीय उच्चायोग के मनीष गौतम अपनी पूर्व निर्धारित व्यस्तताओं के कारण मेरे साथ आगे नहीं जा सके. मेरी गाड़ी में अब सिर्फ नीरज पोद्दार और थापा जी थे. शंकर ड्राइव कर रहें थे, रंजीत अन्य सदस्यों और छात्रों के साथ महिंद्रा ज़िनियो में था, और राघवेन्द्र ट्रक में.

मौसम बहुत सुहाना था, ना ठण्ड ना सर्द, बस गुनगुनी धुप. अभी तक बीरगंज से काठमांडू और फिर ललितपुर, भक्तपुर, सांगा, धुलिखेल आदि इलाको में भूकंप की त्रासदी तो देखी थी पर सच कहूँ तो उसकी वीभत्सता का अहसास नहीं था. जैसे ही इन्द्रावती नदी को पार करने के लिए हम कच्ची रास्ते पर मुड़ते है, कुछ भूकंप में जमीदोज हुए मकान दिखाई देते है, कुछ विदेशी पत्रकार उसकी तस्वीर निकाल रहें थे. हमारी टीम के सदस्यों ने भी तस्वीरे ली, पर धीरे धीरे सारी टीम सहम गयी, चारों तरफ तबाही और वीरान शांति थी.

जैसे जैसे हम आगे बढ़े तबाही के मंजर और वीभत्स होते गए, मेरी मुलाकात मलेशिया से आये डॉक्टरों के समूह से होती है जिनका नेतृत्व नेपाल के ही एक डॉक्टर कर रहें थे. उन्होंने बताया कि यहाँ तो 90% घर गिरे है पर ऊपर के गाँवो में एक भी घर नहीं बचा है.
मालूम पड़ा ऊपर के गांवो में 600 से अधिक लोग मारे है …. ये मौत की घाटी थी |
तस्वीरे खुद ही सब बयां कर रही है.
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नेपाल रिलीफ मिशन : चौथा दिन (10 मई) : धुलिखेल अस्पताल : भाग 2

क्या बिहार में धुलिखेल अस्पताल जैसे किसी अस्पताल का निर्माण कम्युनिटी फंडिंग के द्वारा हो सकता है? भूकंप के बाद से सभी मरीजो का इलाज पूर्णतः निःशुल्क हो रहा है, परन्तु आम दिनों में भी अस्पताल में इलाज़ का शुल्क मात्र 250 नेपाली रूपये है, जिसमें डॉक्टर कि विजिट, नर्सिंग फैसिलिटी के साथ साथ 2 टाइम का खाना और दो टाइम का चाय नास्ता शामिल है, मरीज एवं एक अटेंडेंट के लिए. कई भूकंप पीड़ित जिनके पांव में चार-चार जगह हड्डियाँ टुट चुकी थी, उनका भी ऑपरेशन पूर्णतः निःशुल्क किया गया.

18 सटेलाईट मेडिकल क्लिनिक्स के साथ धुलिखेल अस्पताल ने स्वास्थ सुविधाओं को सुलभ भी बनाया था , क्या बिहार में PMCH या अन्य मेडिकल कॉलेज ऐसा नहीं कर सकते ?

कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाए इस कार्य में धुलिखेल अस्पताल कि सहयता कर रही है. मेरी इच्छा है …. बिहार में भी धुलिखेल अस्पताल जैसा एक मेडिकल कॉलेज होना चाहिए.  प्रभु इच्छा हुई तो ये सपना पूर्ण होगा.
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नेपाल रिलीफ मिशन : चौथा दिन (10 मई) : धुलिखेल अस्पताल : भाग 3

क्या बिहार में कोई ऐसा अस्पताल है जहाँ आपदा पीडीतों को मुफ्त इलाज और भोजन के साथ साथ दुबारा घर बसाने के लिए राहत सामग्री भी दी जाती हो? धुलिखेल अस्पताल द्वारा डिस्चार्ज के समय सभी मरीजो को एक टेंट/त्रिपाल, कम्बल, गर्म वस्त्र, जैकट, मैट, चावल, तेल, आटा, दाल, बर्तन, बाल्टी, टोर्च, साबुन, मंजन, जूता, तौलिया, चाय आदि दिया जा रहा है एवं अस्पताल की तरफ से टैक्सी से घर भेजा जा रहा है.
 
हमने सिमेज की तरफ से एक किट में होर्लिक्स, अमूल मिल्क पाउडर, माचिस, चटाई, भुजिया/दालमोट, ओ०आर०एस पैक्ट्स, ग्लूकोज, सर्जिकल मास्क, बिस्किट, चुड़ा-गुड़ के पैक्ट्स, सैनेटरी पैड्स और चोकलेट एड करवा दिया. साथ ही अस्पताल में 200 कम्बल और 40 त्रिपाल भी जमा कराया.
 
अस्पताल के निदेशक डॉ० राजेन्द्र कुज़ु ने बताया की भूकंप पीड़ित सभी मरीजो का रिकार्ड मेंटेन किया जा रहा है और मेडिकल कॉलेज द्वारा अपने बगल में स्थित अपने इंजीनीयरिंग एवं अर्चिटेक्ट कॉलेज की मदद से मरीजो के घरों के पुनर्निर्माण का बीड़ा भी लिया जा रहा है. एक प्रोटो टाइप घर का निर्माण किया गया है जो भूकंपरोधी है, लागत में कम है और त्वरित रूप से स्थापित किया जा सकता है.
सोचिये एक अस्पताल अगर अपनी जिम्मेवारियों को विस्तार दे तो क्या क्या नहीं कर रहा है !!
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नेपाल रिलीफ मिशन : चौथा दिन (10 मई) : धुलिखेल अस्पताल : भाग 4

धुलिखेल अस्पताल में साथ लाइ गयी दवाइयों को सौंप कर हमें बेहद सुकून का अनुभव हुआ, मेरी नज़र में इस अस्पताल के प्रबंधक, डाक्टर्स, स्टाफ, छात्र और वोलेंटियरस् भगवान के निर्दिष्ट कार्य को कर रहें है. ये हमारा सौभाग्य था कि उन्होंने हमारे योगदान को स्वीकार किया. हमें पूर्ण विश्वास है कि छोटा ही सही पर हमारा प्रयास सार्थक हुआ होगा. शायद किसी के जीवन में कुछ देर के लिए ही सही हमारे प्रयास से छोटी सी खुशी जरुर मिलेगी.
 
उधर महात्मा गाँधी सेवा प्रतिष्ठान के थापा जी सुबह 4 बजे से ही लगातार धुलिखेल शहर पहुँच कर मुझे कॉल कर रहें थे, अस्पताल में भी वो मेरा इन्तजार कर रहे थे, लगातार कॉल से तंग हो मैने नास्ता किये बिना ही अस्पताल का रुख किया था. वो मुझे सिन्धुपालचोक के ऐसे गाँव में ले जाना चाहते थे जहाँ राहत कि सबसे अधिक ज़रूरत थी. वो बार-बार मुझे अस्पताल को दवाई के अतिरिक्त कोई मदद देने से मना कर रहें थे, उनके सतत आग्रह से तंग आ कर मैंने अस्पताल के लिए निकाले गए सामान में से कुछ सामान वापस ट्रक में रखवा दिया. थापा जी ने अस्पताल के कुछ प्रबंधकों को भी कहा कि वो पटना से आई टीम से सिर्फ दवाई लें, त्रिपाल कम्बल और अन्य सामान ना लें. डॉ० राजीव बिष्ट को यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने कहा कि आप सारा सामान ऊपर सिन्धुपालचोक ले जाए , वहीँ ज्यादा ज़रूरत है. मैंने बड़ी मुश्किल से डॉ० बिष्ट और डॉ० कुज़ु को मनाया, पर मुझे थापा का बीच बीच में इंटरफेयर करना अच्छा नहीं लगा.
 
मेरे रिश्तेदार बिनय तिब्डेवाल और भारतीय दूतावास के मनीष गौतम जी को काठमांडू में जरुरी काम था और धुलिखेल अस्पताल से आगे जाने में असुविधा थी अतः वो लौट गए. थापा अधिक से अधिक राहत सामग्री लेना चाहते थे, वो पुरे मिशन में लगातार मेरे पीछे पड़े रहें. भारत में 1300 रूपये में ख़रीदा गया त्रिपाल नेपाल में 14,000 नेपाली रूपये में बिक रहा था. 
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नेपाल रिलीफ मिशन: चौथा दिन (11 मई): इन्द्रावती नदी -भोटशिपा गांव (सिंधुपालचोक)

काठमांडू में हमने ट्रक को बदलने की कोशिश की थी पर दूसरे ट्रक के आने में हो रहें अत्यधिक विलम्ब के कारण हम अपने पटना से आये ट्रक के साथ ही आगे बढ़ गए, थापा जी ने हमें आश्वस्त किया की जिस रास्ते जाना है वहां ये ट्रक आराम से चला जायेगा, परन्तु इन्द्रावती के पुल से पहले ही ट्रक का टायर पंचर हो गया जिसे बदलने में और विलम्ब हुआ. थापा जी सुबह से परेशान थे, उन्होंने 10 बजे सुबह से ऊपर पहाड़ी पर स्थित घोटशिपा गांव में भुकम्प पीडितो को राहत सामग्री वितरण के लिए बुला रखा था पर हमें अस्पताल से निकलने में ही 11 बज चुके थे और घाटी तक पहुँचने में 1.30 बज गए … अब ऊपर से ट्रक का टायर पंचर हो गया. ख़ैर असली डर का सामना तब हुआ जब ट्रक कच्चे रास्तों से होता हुआ पहाड़ी की तीखी चढाई पर हिलते-डोलते, अटकते-सँभलते आगे बढ़ने लगा. सारे रास्ते जो भी बस्ती मिली, तबाह हो चुकी थी.
 
इससे पहले घाटी की शुरुआत में ही थापा जी ने हमारी गाडी को रुकवाया और अपनी एक सहयोगी को हमारे साथ बैठा कर वो खुद ट्रक में जा कर बैठ गए थे, मैंने उनसे कई बार पूछा था कि अभी कितनी देर और लगेगी ? हर बार उन्होंने कहा कि अब बस आ ही गए..
5 किमी और … 2 किमी और …
 
पर उनके दूसरे वाहन में जाने के बाद भी हम कम से कम 15 किमी चल चुके थे और अभी कुछ किलोमीटर और बाकी थे. इस बीच बारिश शुरू हो गयी, शंकर ने कहा कि गाडी बारिश में ठीक से ऊपर नहीं बढ़ पा रही है. मै और पोद्दार गाडी से उतर कर पैदल आगे बढ़ने लगे, खड़ी चढाई थी, पर हमारे उतरने के बाद बारिश बहुत तेज हो जाती है, हम पूरी तरह से भींग रहें है तभी हमारी गाडी आगे बढ़ने के बजाये पीछे सरकने लगती है. हम दौड के गाडी के पास पहुँचते है और बारिश में पहियों के नीचे पत्थर के ओट लगाते है, अब जाकर गाडी कुछ संभलती है पर गाडी जहाँ रूकती है उसके ठीक पीछे खाई थी अतः हम प्रयास कर थोडा आगे ले जाते है, इतने में ओले पड़ने लगते है और हम गाडी के अंदर आ जाते है.
 
बारिश शुरू होने के थोड़े ही देर में ऊपर पहाड से पानी की तेज धार आने लगी , पानी इतनी तेज़ी से आ रहा था कि उससे सड़क ही कट गयी, सड़क कि मिटटी बह गयी और थोड़ी देर के बाद पानी की धार में ऊपर से मोटरसाइकिल पर आते हुए एक दम्पंती वाहन समेत बहते हुए नीचे गिरने लगे जो आगे जा कर हमारे ट्रक में फँस गए और खाई में गिरने से बच गए.
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गाडी धीरे धीरे नीचे की और सरकने लगी, जबकि हमने पहियों के नीचे बड़े पत्थर लगा रखे थे. फिर हमने निर्णय लिया की गाड़ी के हर-एक पहिये के नीचे 2-3 पत्थर लगा कर गाडियों को फिसलने से बचाया जाये पर जब पत्थर लगाने को शंकर सर नीचे उतरे तो वो ही पानी की धार में नीचे गिर गये. तेज पानी के कारण लाल मिटटी का सारे कच्चे रास्ते में कटाव आ गया. ना नीचे वापस जा सकते थे ना ऊपर जा सकते थे, उत्तराखंड में जिस तरह पानी के कारण कटाव हुआ कुछ कुछ वैसा ही नजारा था.
 
बारिश थोड़ी रुकने पर पीछे से रंजीत और अन्य सदस्य आते है, उनकी गाडी भी फंस गयी है और ट्रक तो तेज़ी से फिसलते हुए पहाड़ से टकरा कर धंस गया है, हमारी तीनों गाड़ियाँ अलग-अलग स्थान पर फंस चुकी थी. ऊपर से उतर रहे एक पहाड़ी व्यक्ति ने बताया कि ऊपर का सारा रास्ता टुट चूका है और आप ऊपर नहीं जा सकते. कुछ देर के बाद तेज हवा के साथ बारिश फिर शुरू हो जाती है और रंजित छात्रों के साथ भाग कर भूकंप में टूटे हुए टिन के शेड में शरण लेता है. उसके शेड पर पहले ओला और फिर कुछ पत्थर गिरते है और फिर शेड दूर फेका जाता है, वे अपनी जान बचाने को नीचे फंसी हुई पिकअप गाडी की तरफ भागते है. उनकी दहशत का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन सभी लोगो ने मिल कर कम से कम 20 बार पूरी ताकत के साथ हनुमान चालीसा पढ़ा. मुसीबत में भगवान सबको याद आते है. पोद्दार भी कुछ बुदबुदा रहा था, शंकर गणना कर रहा था कि हमारी गाडी (इन्नोवा) अब तक कितना सरक चुकी थी. गाड़ी के बाहर बारिश और तेज हो चुकी थी, सड़क की लाल मिटटी बहती जा रही थी, सड़क नाम की चीज़ गायब हो रही थी और तभी बहुत ज़ोर की आवाज़ होती है, थोड़ी दूर पर एक पेड नीचे गिर जाता है.
 
ख़ैर मुसीबत उतनी बड़ी भी नहीं थी, हमारे गाडियों में तेल था, हमारे पास प्रयाप्त मात्रा में चुड़ा-गुड़ था, सत्तू था, बिस्किट थे, पानी था, त्रिपाल था, कम्बल था, यानी रात काटने को ज़रुरी सब सामान था. 7 बजे शाम को हम यह तय करते है कि तीनों गाडियों को एक जगह पर किया जाए, यानि कि जहाँ ट्रक फँसा है वहाँ, वो जगह चौड़ी है और बाकि गाडियों को शाम में मूव करना संभव था परन्तु ट्रक को बिना खाली किये हिला पाना संभव नहीं था.
 
रात को जिस हिम्मत, दिलेरी और सुझबुझ के साथ टीम ने तीनों गाडियों को एक स्थान पर लाया, वो काबिले तारीफ़ है. जबरदस्त मुश्किलों के बीच टीम ने एकजुटता दिखाई और जो असम्भव लग रहा था वो पूरा हुआ. अब एक जगह एक साथ रात काटना आसान था.
 
मै, पोद्दार और शंकर भूकंप पीडितो के लिए लाये गए चुड़ा-गुड़ को खा कर इन्नोवा में ही सो गए, पर सामने ज़िनियो गाडी में टीम मेम्बेर्स को नींद नहीं आ रही थी. बाद में पता चला कि उन्हें किसी ने कह दिया कि ये तेंदुआ का इलाका है और यहाँ चुड़ैल भी आती है
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नेपाल रिलीफ मिशन : पांचवा दिन (11 मई) : भोटशिपा गांव (सिंधुपालचोक) : भाग 3

इन्टरनेट और मित्रों के माध्यम से ये जानकारी मिल चुकी थी कि सिंधुपालचोक में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है और उस पुरे इलाके के मरीजों का इलाज धुलिखेल अस्पताल में ही हो रहा है। धुलिखेल अस्पताल कम्युनिटी फंडिंग से बना एक मेडिकल कॉलेज है जो काठमांडू युनिवर्सिटी के तहत संचालित है। लगभग 150 किलोमीटर कि रेडियस से मरीज आते है। अस्पताल द्वारा आस पास के जिलो में कुल 18 सटेलाईट मेडिकल रिलीफ क्लिनिक्स भी चलाये जा रहें है, जिनमे से कुछ भूकंप में ध्वस्त हो गए।

300 बेड के इस अस्पताल में अभी 1600 मरीजो का इलाज़ हो रहा था, बिलकुल निशुल्क। भूकंप के बाद से कुल 250 मेजर और 2000 माइनर ऑपरेशंस किये गए सभी निःशुल्क। मरीजो का और उनके एक परिजन का खाना नास्ता मुफ्त , दवाइयां मुफ्त, आर्मी द्वारा हेलिकोप्टर से मरीजो को लाया जा रहा था। जितने मरीज अस्पताल के अंदर इलाज़ करा रहें थे उतने ही बाहर भी थे। अस्पताल के बाहर लगातार लंगर चल रहा था , मरीजो के परिजनों के लिए।
 
हम सुबह 8 बजे धुलिखेल अस्पताल पहुंचे, डॉ० राजीव बिष्ट और निर्देशक डॉ० राजेन्द्र कुज़ु से मुलाकात हुई, उन्होंने बताया कि वो ना केवल मरीजो के इलाज़ का कार्य करा रहें है वरन मरीजो को सभी ज़रुरी राहत सामग्री भी बाँट रहें है और अपने सटेलाईट सेंटर्स के माध्यम से वो दूर दराज के ग्रामीण इलाको में भी राहत सामग्री जैसे कि टेंट, त्रिपाल, चटाई, कम्बल, कपडे, जुते, बर्तन, खाद्य पदार्थ आदि का भी वितरण कर रहें है।

हमने अपनी सारी बची हुई (लगभग 80%) दवाइयों को यहाँ धुलिखेल अस्पताल में देने का निर्णय किया, साथ ही आधी नॉन मेडिकल राहत सामग्री भी धुलिखेल अस्पताल को देने का निर्णय किया।

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नेपाल रिलीफ मिशन : पांचवा दिन (11 मई) : भोटशिपा गांव (सिंधुपालचोक) : भाग 4

रास्ता खुद बनाओ और आगे बढ़ो …
डर के आगे जीत है !!!
जय पशुपतिनाथ !!
 
लौटने के क्रम में बड़ी से बड़ी दुश्वारियां छोटी महसूस हो रही थी, ट्रक को हटा कर कच्ची सडक पर यु-टर्न कराने में लगभग एक घंटा से अधिक समय लगा, स्थानीय लोगो और स्थानीय ड्राइवरों ने साथ दिया पर टीम के सभी सदस्यों में भी जबरदस्त जोश था. जय पशुपतिनाथ के जय घोष के साथ उन्होंने ना सिर्फ सभी वाहनों को धक्के दे कर निकाला बल्कि सारे रास्ते में पत्थरों को लगाते हुए रास्ते का निर्माण भी किया. रास्ते भर कुछ सदस्य पैदल चल रहें थे और उन्होंने पचासों जगह गाड़ी को धकेल कर या खंती और कुदाल से मिट्टी को काट कर या पत्थरो को रख कर रास्ते का निर्माण किया.
 
हम जिस रास्ते से आये थे उससे लौटना संभव नहीं था, वैकल्पिक रास्ता थोडा कठिन पर बहुत सुंदर था. जल्द ही हम नदी की तलहट्टी तक पहुँच गए और फिर नदी के साथ ही चलते रहें कई बार नदी को पार किया. एक स्थान पर काफी नीचे उतरना था मैंने जोर से टीम को आवाज लागई, “बानर सेना इस जगह पर एक राम सेतु का निर्माण करो” तुरंत “ढुङ्गो-ढुङ्गो” कहते हुए टीम ने पत्थरों से गैप को भर दिया और हमारी गाड़ी नीचे उतर गयी.
(शायद नेपाली में पत्थर को ढुङ्गो कहते है) पक्की सड़क पर पहुँच कर टीम ने राहत की साँस ली.
 
उधर अर्जुन थापा जी और राजेन्द्र जी ने ऊपर भोटशिपा गाँव के वार्ड नम्बर 2 में राहत सामग्री का वितरण किया. हमें शुरू में उनपर नाराजगी थी क्यूंकि उन्होंने हम से रास्ते के बारे में झूट बोला था, उनके कारण ही हम वहां पहाड पर फंस गए थे पर हम उनके इरादों को समझ रहें थे वे राहत सामग्री को जरूरतमंदो तक पहुँचाना चाहते थे. उन्हें डर था कि असलियत जान कर हम शायद उनके साथ नहीं आते, पर शायद उन्हें जोखिम का सही अनुमान नही था क्योकि स्थनीय लोगो ने बताया कि इस तरह कि बारिश पिछले कई महीनो में नहीं हुई थी. अगले दिन भी बारिश के कारण राहत सामग्री का सही से वितरण नहीं हो पाया और फिर 12 मई को दूसरा भूकंप आ गया. 15 मई तक सारी सामग्री बट गयी | राजेन्द्र जी का फोन आया कि गाँव का पानी प्रदूषित हो चूका है मैंने उन्हें बताया कि धुलिखेल अस्पताल में हमने 80 जार क्लोरीन दिया था. इतना क्लोरीन एक साल तक एक छोटे मोटे शहर के पानी को साफ़ कर सकने के लिए काफी है. उनको वहां से 2 जार क्लोरीन दिलवा दिया.
 
काठमांडू पहुँचकर टीम की लापरवाही से हमारा ट्रक खो गया. जिनको ट्रक में नेपाली मोबाईल नम्बर के साथ बैठाया था, वो भी ज़िनियो में आकार बैठ गए और कोई भी ये बताने की स्थिति में नहीं था की ट्रक कहाँ है. ख़ैर 3 घंटे की मशक्कत के बाद ट्रक मिला, नेपाली पुलिस से वायरलेस मेसेज करवाकर, सभी नाकों को सुचना दी गयी.
 
इतनी सारी आफ़तों से सुरक्षित निकल आ जाना कोई दैवीय चमत्कार से कम नहीं था, अतः देर हो जाने के बावजूद हम पशुपतिनाथ के दर्शन को गए, उन्हें धन्यवाद किया, और आशीर्वाद ले कर उनके शहर से विदा हुए, बिना रुके सीधे भारत के लिए. मुग्लिन में आते वक्त जहाँ खाना खाया वही रुके और फिर सुबह 6 बजे तक पहुंच गए बीरगंज, और फिर बिना वक्त गवाए सीधा रक्सौल.
 
अपने देश की हवा की बात ही कुछ और है
यात्रा वृतांत समाप्त, यात्रा में मेरा साथ देने के लिए धन्यवाद.
 
विशेष धन्यवाद IIM-A के मेरे बैचमेट राकेश मित्तल और मनीष देसाई जी को जिन्होंने इस अभियान में अपनी भी सहभागिता दिखाई.
मेरे अग्रज राजू सुल्कोतानिया जी भी आभार जिन्होंने कुछ राहत सामग्री और अपना ट्रक दिया (जिसे हम गोद में बच्चे की तरह संभाल के ले गए और वापस लाये), सभी छात्रों और सिमेज टीम के उन सदस्यों को धन्यवाद जिन्होंने इस अभियान में अपनी भूमिका निभाई.
 
नेपाल में सहयोग करने हेतु मेरे अनुज बिनय तिब्डेवाल, भारतीय उच्चायोग के मनीष गौतम, महात्मा गाँधी स्मृति सेवा प्रतिष्ठान के अर्जुन थापा, राजेंद्र, स्पाइनल सेंटर, संगा के डॉक्टर Jad KO Jay Hos, Do. Raju Dhakal, Dhulikhel Hospital के Do. Rajeev Bisht, स्वतंत्रता पार्टी के Nezamuddin Samani, Mayor Dhulikhel town,एवं श्री Mukesh Sarawagi को धन्यवाद.
 
भोटशिपा गाँव के ग्रामीणों को धन्यवाद.
उस नेपाली लड़की को धन्यवाद जो अपने पिता को भूकंप में खोने के बाद हमारे साथ रिलीफ मिशन में लगी थी, हमारे बेतुके जोकस् पर हँस रही थी.
 
बीरगंज में भारतीय कांसुलेट के श्री चैतन्या एवं बिहार सरकार के अधिकारी श्री व्यास जी, और श्रीधर जी को धन्यवाद. नेपाल के प्रशासन, पुलिस, और आर्मी को धन्यवाद. टीम में साथ गए सभी सदस्यों को धन्यवाद. मेघा को धन्यवाद जिसने इस मिशन को अपने हाथो में उठा लिया था, और अंत में पापा को थैंक्यू कहना चाहूँगा, जिन्होंने ना केवल सारी खरीदारी की बल्कि जब मैंने कहा की इस अभियान में मेरा योगदान 1 लाख से बढ़ा कर 2.5 लाख करना पड़ेगा तो उन्होंने एक उफ़ तक नहीं किया. मम्मी को कभी धन्यवाद कह नहीं पाता, पर मै जो भी करूं हिम्मत उन्ही से मिलती है, वो ही शक्ति -स्वरूपा मेरे साहस की स्त्रोत है. उनके ही पुन्य और तप का परिणाम है कि विकट से विकट परिस्थिति में प्रभु मेरी रक्षा करते है.
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